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और उनके सिद्धान्त। १७९ यह लय हो जाता है । अतः नामरूप सर्वजगत् ब्रह्मरूप है। अतः सत्य है।
'सर्व खल्विदं ब्रह्म' इस श्रुति में जो 'इदम्' शब्दका व्यवहार हुआ है वह समीपवाची और प्रत्यक्ष को कहने वाला है । अतः प्रत्यक्ष दीखता हुआ सर्व जगत् ब्रह्मरूप है। अतः सत्य है। __यह जगत् सनातन ब्रह्मरूप है यह वात उपनिषद् में वेतकेतु के उपाख्यान में कही है । वहां उद्दालक ऋषि कहते हैंसन्मूला: सौम्येमाः प्रजाः सदायतनाः सत्प्रतिष्ठाः । तत्सत्यं यदिदं किं च तत्सत्यमित्याचक्षते ।। __ अर्थात्-हे सौम्य ! इस प्रजाका मूल सद्रूप ब्रह्म है । इसका निवास स्थल भी ब्रह्म है और अन्त मे इसकी गति भी ब्रह्म ही है इसलिये यह सत्य है। वेदमें कहा है
"कथमसतः सजायेत" अर्थात् असत्य से सत्य कैसे पैदा हो सकता है । ब्रह्म जब सत्य है तो जगत् भी सत्य है क्यों कि ब्रह्म में से ही जगत् पैदा हुआ है। ___ जगत् को सत्य मानना ही पड़ेगा । क्यों कि जब हम इसे सत्य मानेंगे तभी जगत् में आये हुए वेद, गुरु