________________
१७७
और उनके सिद्धान्त। ७-श्रीकृष्ण का साक्षात्कार, | पर फिर जीव के लिये उन की सायुज्य प्राप्ति मिलनी, कुछ भी कर्तव्य शेष उनकी सेवा प्राप्ति और सेवा का नहीं रहता। अधिकार यही परम पुरुषार्थ ४-जगत् का कर्ता किंवा चतुर्थ पुरुषार्थ (मोक्ष) है। मायिक ईश्वर है। ईश्वर
-मोक्ष का किंवा आनन्द | के धर्म, रूप आकार प्राप्तिका एक मात्र उपाय भगवान् प्रभृति सव काल्पनिक श्रीकृष्ण की भक्ति करना ही है | हैं। श्रीकृष्ण आदि उस
९-भगवान् के अनुग्रह से | मायिकब्रह्म के अंशाभी भक्ति किंवा अन्य फलों की | वतार हैं । इसी से प्राप्ति हो सकती है।
उनके आकार, उपदेश १०-श्रीकृष्ण की भक्तिकरना
और स्वरुपादिक मायिक ही जीव का मुख्य और निष्काम है। कर्तव्य है । यही जीव का धर्म है। ११-जितना और जबतक
५-स्वर्गादिक कोई देहाध्यास बना रहे उतना और सत्य पदार्थ नहीं है । तवतक ही वर्णाश्रमादिधर्म अपने
कर्म कराने के लिये
| वेद में झूठ मूठ ही इन मानकर कर्तव्य है । अनन्तर तो एक मात्र भक्ति ही जीव | की लालच दी गई हैं। का धर्म है। ज्ञानी को भी लोक- | शुद्ध ब्रह्म निर्धर्मक, संग्रह के लिये शास्त्रोक्त धर्म निविशेष और निराकार कर्तव्य रहते हैं।
हैं ।