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________________ १७५ और उनके सिद्धान्त। अर्थात्-यह सब आत्माही है उसी प्रकार यही सब ब्रह्म है। सर्व श्रुतियों का यही अर्थ और तात्पर्य है यह ग्रहणकर पुरुषमात्रको अपनी २ वुद्धिके अनुसार वेदार्थ साध्य करना चाहिये । इसी को ब्रह्मवाद कहते हैं और यही वास्तदमें ब्रह्मवाद है । अन्य जो कुछ कहा गया है सब कल्पित है और इसीसे मोहक है। अर्थोयमेव निखिलैरपि वेदवाक्यैः रामायणैः सहित भारतपंचरात्रैः। अन्यैश्व शास्त्रवचनैः सहतत्त्वसूत्रैनिर्णीयते सहृदयं हरिणा सदैव ।। अर्थात्-इसी ब्रह्मवाद के अर्थ को भगवान् श्रीकृष्ण ने समग्र वेदवाक्य, रामायण, भारत, पंचरात्र, अन्यशास्त्रों के वचन और व्याससूत्रों के द्वारा, एक वाक्यता कर, रहस्य सहित सर्वकालके लिये श्रीमद्भगवद्गीता में निर्णय किया है श्रीवल्लभाचार्य के द्वारा प्रतिपादित मत को ब्रह्मवा कहते हैं और श्रीशंकराचार्य द्वारा प्रर्वा मायावाद में भेट मत को हमारे यहां मायावाद कहते हैं पाठकों के मनोरंजन के लिये यहां दोनों वाद के कुछ सिद्धान्त रखते हैं । इस के द्वार Pा ही अनुमान करलें कि किसका मत ब्रह्म सूत्रे ब्रह्मवाद और
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
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