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श्रीमद्वल्लभाचार्य चाहिये । जैसे घर में अपने पुत्र का विवाह हो तो ठाकुरजी के समीप जा आजानु नतमस्तक हो हाथ जोड आत्यंत दीनता और विनय पूर्वक कहना चाहिये “नाथ ! आप के पुत्र का विवाह है । आपकी आज्ञा की इस में अपेक्षा है । विवाह की आज्ञा दीजिये"। __विवाह हो जाय तब नववधु को लाकर ठाकुरजी के सन्मुख दण्डवत करा कहना चाहिये "नाथ ! आपकी आज्ञानुमार आपके दास दासियों में एक दासी की अभिवृद्धि कर ली गई है । कृपालो, आप इसे स्वीकार करिये" इसी प्रकार अपने लियें लाई गई समस्त वस्तु पहले ईश्वर के निवेदन करै । निवेदन का अर्थ विज्ञापन, है दान नहीं, यह बात भूलनी नहीं चाहिये । निवेदन, यदि तात्पर्यतः देखा जाय तो सम्बन्ध स्थापन या सम्बन्ध स्वीकार ही है। 'ब्रह्मसंबंध' मन्त्र मानो उपदेश दे रहा है-'सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज' जगत् के सर्व धर्मों का परित्याग करना हो तो कर दो केवल एक मेरे ही शरण चले आओ, मुझ से संबंध स्थापित कर लो, तुमारा उद्धार हो जायगा।
वैष्णवों को 'ब्रह्मसम्बन्ध' दीक्षा अवश्य लेना चाहिये । 'ब्रह्म सम्ब- बिना ब्रह्मसम्बन्ध के कोई भी मनुष्य वैष्णव
न्ध दीक्षा' नहीं हो सकता । इसके अतिरिक्त अवैष्णवों को भी इस दीक्षा को खुशीसे लेनी चाहिये । वैष्णवी दीक्षा