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और उनके सिद्धान्त। १५७ दोष का स्वीकार और उन से क्षमा प्रार्थना । ब्रह्मसंबंध मी यही है। अपने सर्वसमर्थ ईश्वर के आगे गुरुकी साक्षी में आत्मनिवेदन करना, जीव के यावत् पदार्थ प्रभु के हैं यह स्वीकार करना, तथा अहन्ता ममता वश जीव को जो प्रभु पदार्थ पर अभिमान् हुआ था उस की क्षमा याचना
और अपने को प्रभुका दास समझना ही ब्रह्मसंबंध है। ___ 'ब्रह्मसंबंध' शब्द में ब्रह्म शब्द का अर्थ भगवान् पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण है और संबंध का अर्थ है अंशांशी भाव वा स्वस्वामिभाव संबंध । भगवान् के अनेक नाम रहते हुए भी यहां ब्रह्म शब्द इस लिये रक्खा गया है कि भगवान् श्रीकृष्ण को वेद में ब्रह्म नाम से संबोधित किया गया है । इस ब्रह्मसंबंध मन्त्र को वेदाविरुद्ध बताने के लिये ही यहां ब्रह्म शब्द रक्खा गया है। __'ब्रह्मसम्बन्ध' का अर्थ है कि “हे स्वामिन् , यह दास आपका है । इसका धन, धान्य, पुत्र, कलत्र और सर्वस्व आपका ही है। में अत्यन्त दीन और निःसाधन हूं। मेरे पास मोक्ष के लिये या आपको प्रसन्न करने के लिये कोई भी साधन नहीं है । अतएव हे दयालो, दया कर मुझे आप अपनी सेवा में अङ्गीकार कीजिये । मैं आप ही का हूं।" ___ 'ब्रह्मसंबंध' हो जाने पर प्रत्येक वैष्णव को अपने उपभोग से पूर्व सकल पदार्थ भगवान् के समर्पण करने चाहिये। कोई भी कार्य भगवान् की आज्ञा लेकर ही करना