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श्रीमदल्लभाचार्य
जानेसे अपने और श्रीकृष्ण के संबंध को भूल रहा है उसके लिये यह ब्रह्मसंबंध है । जीव ब्रह्म का अंश है और ब्रह्म जीव का अंशी । यह अंशांशी भाव संबंध अतिप्राचीन है। ऐसा कोई भी भगवच्छास्त्र नहीं है जिसमें कि यह ब्रह्मसंबंध न हो। __ ब्रह्मसंबंध शुद्धाद्वैतमत में एक दीक्षा का नाम है । इस के कुछ अंश भी हैं । जैसे आत्मनिवेदन शरण, या आत्मसमर्पण आत्मनिक्षेप । इन सबों का एकत्रितरुप ब्रह्मसंबंध है। 'जीव प्रभु का है' 'मैं आप का हूं' बस यही स्मरण रखना दोष निवृत्ति का सरल उपाय है। दीनता का अनुवाद कर के अपनी वस्तु स्थिति निवेदन कर स्वामी के आगे जो यह कह रहा है कि 'हे प्रभो, मैं आपका दास हूं, आप मुझे अपनी शरण में लीजिये।मैं आपकी शरण आया हूं।' उस की अवश्य ही दोष निवृत्ति होती है। प्रभु सर्व समर्थ हैं सब के स्वामी हैं उनको ही भूल जाने का अपराध इस जीवने किया हैं अर्थात् प्रभु के पदार्थो में अपनी अहंता ममता स्थापित की है, और अपने ही पदार्थ समझ स्वामी का अक्षम्य अपराध किया है । इस महान् अपराध की निवृत्ति उन के शरण जा अपना आत्मनिवेदन करने से ही होती है। सत्य, समर्थ और दयालु स्वामी के आगे अपने दोष की निवृत्ति करने का उपाय है तो वह अपने