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श्रीमद्वल्लभाचार्य आत्मनः समर्पिताः ।' अर्थात्-यह जो सब प्राणी मात्र का अधिपति विश्वात्मा प्रसिद्ध परमात्मा है वह सब प्राणीमात्र का राजा है। जिस प्रकार रथ के चक्र की नाभी और नेमी में सब आरा अर्पित हैं उसी प्रकार इस परमात्मा के चरणों में सर्वभूत, सर्व लोक, सर्वदेव, सर्वप्राणी और सर्व जीवात्मा समर्पित हैं। ___ उपर्युक्त श्रुति मनुष्य और परमात्मा का संबंध बता रही है। सर्व प्राणीओं का मूल परमात्मा होने से उन सब पदार्थों को, अपने आप को एवं अपने से संबंध रखने वाले सबों को परमात्मा के अर्थ निवेदन करना उचित है । आत्मनिवेदन करने से अवश्य ही आध्यात्मिक सुख की वृद्धि होती है। _ यह निश्चय ही याद रखना चाहिये कि यह आत्मसमपण या आत्मनिवेदन सर्वशक्तिमान ईश्वर भगवान् श्रीकृष्ण के अर्थ करने में आता है आचार्य गुरु या और इतर व्यक्ति को आत्मसमर्पण शास्त्रों से निषिद्ध है और उसे हमारे संप्रदाय में स्थान नहीं हैं । केवल आचार्य की साक्षी में और आप के उपदेश से यह निवेदन श्रीठाकुरजी के समीप होता है। ___ आत्मनिवेदन करनेसे हमारा ईश्वर के साथ संबंध स्थापित होता है इसी लिये इसे ब्रह्म संबंध कहते हैं । ब्रह्म