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________________ १४२ श्रीमद्वल्लभाचार्य अर्थात्-अपने २ आश्रम मर्यादा का आचरण करते २ जब ब्रह्म का अनुभव और भगवन्माहात्म्य का ज्ञान होने लगे और इसके अनन्तर प्रभु में स्नेह होने लगे तो वह भक्ति अथवा स्नेह ब्रह्मभाव उत्पन्न करता है । अर्थात् इस अवस्था पर पहुंच जानेपर उसे ब्रह्म का साक्षात्कार होता है । पूर्वोक्त सर्वगुणसहित स्नेह यदि प्रभुसेवा सहित हो तो वह सेवा त्रयोदश गुण वाली कहलाती है । कालान्तर में यही सेवा आनन्दरूपा हो कर फल रूपा हो जाती है। उस उत्कृष्ट प्रेमा भक्ति का अनुभव करने में वर्णाश्रमादि वैदिक धर्म प्रतिबन्धक होने लगते हैं । इस अवस्था में इन धर्मों का परित्याग करना पडता है। किन्तु जो ऐसी भूमिका में नहीं पहुंचे उनके लिये तो वर्णाश्रमवर्म सर्वथा मान्य हैं।'
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
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