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________________ और उनके सिद्धान्त । १४१ ने उनके कार्य का दिग्दर्शन करा पर लोक भय दिया था। तथा भाई, पिता, पति इत्यादि का नाम निर्देश कर जब लोक भय दिया था तब भी वे अचल रही थीं। __ इस जगह "सर्व वाधकतास्फूर्तिः' का अर्थ हम यह भी कर सकते हैं कि 'वैदिक कर्मादि और दैहिकादि लौकिक कर्म भगवद्भक्ति के प्रतिवन्ध हैं यह जब मालूम होने लगे वह शुद्ध पुष्टि भक्ति है" ___ इस सन्दर्भ से पाठक गण शुद्ध पुष्टि भक्त और शुद्ध पुष्टि भाक्त के अधिकार का जान सकग । जब मनुष्य शुद्ध पुष्टि भक्ति की अवस्था को प्राप्त कर लेता है तब उसे लौकिक या वैदिक कोई भी कर्तव्य करने वाकी अथवा अवश्यक नहीं रहते । ऐसे महापुरुष प्रभु प्रेम में ही तल्लीन रह कर लौकिक वैदिक कर्तव्य कर नहीं सकते । ऐसे महात्मा के लिये श्रीमद्वल्लभाचार्यजी लिखते हैं"स्वाश्रमाचारसहित ब्रह्मानुभवसाहितमाहात्म्यज्ञानपूर्वकस्नेहो ब्रह्मभावं करोति । तादृशश्चेत् परिचर्या सहितो भवेत् । तदा सा परिचर्या आनन्दरूपा सती त्रयोदशगुणा भवेत् । तदा फलरूपायां तस्यां स्वाश्रमाचारादिकरणं फलानुभवप्रतिवन्धकमिति फलत्वेनानुभवे स्वाश्रमाचारास्त्यक्तव्याः । यथा ब्रह्मभावं गतस्य । अन्यथा कर्तव्या इति निष्कर्षः ।"
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
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