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________________ १४० श्रीमद्वल्लभाचार्य है । इस लिये नाथ, हमपर दया करो। हमारी चिर संवर्धित आशा लता पर अमृत वारि का वर्षण करो । नाथ ! आज अपने अमृतोपम मधुर संभाषण से हमारी इस तप्त काया को शीतल करो । आज हमें अपने इस किसलय कोमल बाहु युगल से अपने भवच्छिद वक्षस्थल में वेष्टित कर हमारे ताप दूर करिये । नाथ, आप निठुर बन कर हमें व्रज में वापस जाने का आदेश दे रहे हैं किन्तु यह आप निन्ति सत्य मानिये कि अब हमारे में वहां लौटने की शक्ति नहीं है । यदि हम आपके द्वारा प्रतारित हुई तो सत्य समझिये इस नश्वर देहका परित्याग कर हम आज ही आप में अनश्वर रूप हो मिल जायगी। कन्दर्प दर्प दलन निठुर ! जरा अपने मधुर श्रीअङ्ग का तो एक बार निरीक्षण करो । क्यों ऐसा विश्व विमोहक रूप लेकर यहां आये हो ! आपके इस मदन हृदय मथन रुपको देखकर कहो तो सही ऐसी त्रिलोक में कौन सी सती स्त्री है जो अपने आर्य चरित से विचलित न हो जाय । इस से नाथ ! हम पर दया करो । आज हमें अपनी सेवा में लेकर कृतार्थ करो।" इस प्रकार हृदय को द्रवित करने वाले गोपीजनों के वाक्य सुन भगवान् मुग्ध हो गये। ___ इस अवतरण के देने का तात्पर्य यह है कि श्रीगोपीजनों की भक्ति इतनी बड़ी चढी थी कि उनको जब भगवान्
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
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