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श्रीमद्वल्लभाचार्य है । इस लिये नाथ, हमपर दया करो। हमारी चिर संवर्धित आशा लता पर अमृत वारि का वर्षण करो । नाथ ! आज अपने अमृतोपम मधुर संभाषण से हमारी इस तप्त काया को शीतल करो । आज हमें अपने इस किसलय कोमल बाहु युगल से अपने भवच्छिद वक्षस्थल में वेष्टित कर हमारे ताप दूर करिये । नाथ, आप निठुर बन कर हमें व्रज में वापस जाने का आदेश दे रहे हैं किन्तु यह आप निन्ति सत्य मानिये कि अब हमारे में वहां लौटने की शक्ति नहीं है । यदि हम आपके द्वारा प्रतारित हुई तो सत्य समझिये इस नश्वर देहका परित्याग कर हम आज ही आप में अनश्वर रूप हो मिल जायगी। कन्दर्प दर्प दलन निठुर ! जरा अपने मधुर श्रीअङ्ग का तो एक बार निरीक्षण करो । क्यों ऐसा विश्व विमोहक रूप लेकर यहां आये हो ! आपके इस मदन हृदय मथन रुपको देखकर कहो तो सही ऐसी त्रिलोक में कौन सी सती स्त्री है जो अपने आर्य चरित से विचलित न हो जाय । इस से नाथ ! हम पर दया करो । आज हमें अपनी सेवा में लेकर कृतार्थ करो।"
इस प्रकार हृदय को द्रवित करने वाले गोपीजनों के वाक्य सुन भगवान् मुग्ध हो गये। ___ इस अवतरण के देने का तात्पर्य यह है कि श्रीगोपीजनों की भक्ति इतनी बड़ी चढी थी कि उनको जब भगवान्