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________________ और उनके सिद्धान्त । १३९ सुन कर व्रजस्त्री वडी क्षुब्ध हुई । किन्तु अन्त में साहस कर बोलीं___ "नाथ, इस प्रकार का नृशंस भाषण आपको शोभा नहीं देता । जरा हमारी तरफ देखो तो सही । हमने आप के पीछे सवका त्याग कर दिया है। लोक में बाँध रखनेवाली दुर्दमनीय माया का भी हमने आपके लियें परित्याग कर दिया है । अच्छे से अच्छे विषय भोग को भी हमने उस प्रकार तज दिया है जिस प्रकार क्षीण फल वृक्ष को विहंगम वृन्द ! केवल आपके चरण शरण का भरोसा रख कर हमने अपने पति, पुत्र, वन्धु पिता इत्यादि का भय भी उसी प्रकार छोड दिया है जिस प्रकार मार्कण्डेय ने शिव की शरण पाकर यम का भय छोड दिया था ! नाथ ! हम आपके भक्त हैं । भक्त की रक्षा भगवान नहीं करेगा तो और कौन करेगा ? आपने हमें पति पुत्र इत्यादि की याद दिलाई है यह ठीक है । किन्तु नाथ ! यह उन लोगों के लिये सम्भव है जिनने अभी तक आपके चरणारविन्द के मधुर मकरन्द को एक बार भी नहीं आस्वादित किया। हमारे लिये तो धन, गृह, पुत्र पति जो भी कुछ हो, आप हो । हमने तो अपनी आत्मा को आप में समर्पित कर दिया है। जो कुशल मनुष्य इस संसार को आर्ति बढाने वाला जान लेता है वह कभी इसके माया जाल में नहीं फँसता । वह तो केवल आप को ही अपना लक्ष्य मानता
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
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