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पुष्टिमार्ग के सेव्य श्रीकृष्ण ।
भगवान् श्रीकृष्ण ही इस पुष्टिमार्ग में सर्वोपरि गिने गये हैं और इन्हीं की इस मार्ग में परिचर्या होती है। वेदके दिव्याकार प्रभु श्रीकृष्ण ही हैं । आप पूर्णकला सहित यहां पधारे थे इसलिये आप अवतारी होनेपर भी अवतार कहे जाते हैं । आपका प्राकट्य होता है किसीके द्वारा अवतार नहीं । आप दिव्य स्वरूप से यहां प्रकट हुए हैं इस बात का साक्ष्य भगवान् स्वयं अपने को बतलाते हैं। गीतामें आप आज्ञा करते हैं
जन्मकर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः। त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोर्जुन ॥
अर्थात्-'हे अर्जुन मेरे जन्म और कर्म दोनों दिव्य हैं । जो मनुष्य ये वात भली प्रकार जान लेता है वह फिर दुःख नहीं पाता और अन्तमें मुझे प्राप्त करता है। किन्तु यह चात सर्वत्र और सर्वदा प्राप्त नहीं होती इसी वातको प्रभुने यों कहा है