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________________ १३४ श्रीमद्वल्लभाचार्य प्रतिबन्धों को दूर कर अपने मन का भगवान् श्री कृष्ण में लगान यही शुद्ध पुष्टि भक्ति है । इस शुद्ध पुष्टि भक्ति की तीन अवस्था हो जाती हैं। वह तीन अवस्था यों होती हैं। ___ अन्य लौकिक पदार्थों में स्त्री पुत्रादिको में-जव भक्ति के आधिक्य होने से प्रीति हट जाती है-इन पदार्थों की निस्सारता विदित हो जाती है और भगवान् के माहात्म्य का जब बोधहो कर वहां चित्त लगता है उसे स्नेह कहते हैं। स्नेह के अनन्तर आसक्ति की अवस्था प्राप्त होती है। इस अवस्था में अपने गृहादिकों पर अरुचि होने लगती है। 'प्रभु भावसे रहित स्त्री पुत्रादि मेरे प्रभु प्रेम में प्रतिबन्ध हैं' यह भाव उसका उत्तरोत्तर बढता जाता है। यह आसक्ति है । ___ अब तीसरी अवस्था व्यसन की आती है जब लौकिक अथवा अलौकिक समग्र पदार्थों से मन हटकर केवल प्रभु प्रेम और प्रभुका ही निरन्तर ध्यान रहे-प्रभु बिना एक क्षण के लिये भी और कोई वस्तु अच्छी न लगे वह व्यसन है। इस अवस्था में सर्वत्र प्रभुका ही आविर्भाव दीखने लगता है । सारा संसार उस भक्त के लिये प्रभुमय हो जाता है । जब भगवान् में व्यसन हो जाय तो समझ लेना चाहिये कि जीव कृतकृत्य हो गया । इसी बात को आचार्योंने इस प्रकार कही है
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
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