SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 219
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ और उनके सिद्धान्त । १३३ सर्वथा प्रभु के ही हाथ में है । यह दशा साधनों से प्राप्त की नहीं जा सकती। यह दशा भक्त को यदि प्राप्त हो जाय तो वह कृतार्थ हो गया यह समझना चाहिये । यह समझना चाहिये कि 'व्यसन' शुद्ध पुष्टि भक्ति की ही उत्तम और अन्तिम अवस्था है। शुद्ध पुष्टि भक्ति की अवस्था श्रीमद्भागवत के तृतीय स्कन्ध, २९ वें अध्याय के ११ वे श्लोक में वर्णित है । वह अवस्था यह है मद्गुणश्रुतिमात्रेण मयि सर्व गुहाशये । मनो गतिरविच्छिन्ना यथा गङ्गाम्भसोऽम्बुधौ ।। इस श्लोक की व्याख्या करते हुए श्रीमहाप्रभुजी ने सुबोधिनीजी में लिखा है___ "सर्वगुहाशये मयि भगवति प्रतिवन्धरहिता अविच्छिन्ना या मनोगतिः-पर्वतादि भेदनमपि कृत्वा यथा गंगाम्भः अम्बुधौ गच्छति तथा लौकिकवैदिकप्रतिवन्धान् दूरी कृत्य या भगवति मनसो गतिः।" ___ अर्थात्-सर्व गुहास्थित सर्व प्राणिमात्र में निवास करने वाले समग्र पडैश्वर्य सम्पन्न भगवान् श्रीकृष्ण में गुणश्रवण मात्र से अविच्छिन्न और सतत मन की गति का होना यह शुद्ध पुष्टि भक्ति है । जिस प्रकार गंगा का प्रवाह पर्वतादि समर्थ विघ्नदाताओंका भी भेदन कर समुद्र में गिरता है उसी प्रकार भगवद्भक्त का लौकिक या वैदिक
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy