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श्रीमद्वल्लभाचाये
आपके वियोग का अनुमान कर बडे दुःखी हुए। तब श्रीगुसाईजी ने उनसे कहा-'मेरा तो यहां रहना होगा नहीं, हां श्री जी तुमको नित्य दर्शन देंगे।'
उस दिन से श्रीजी प्रतिदिन श्रीगिरिराज से मेवाड नाथद्वार-पधारकर महाराणा को दर्शन देते । एक दिन राणाने श्री जी के श्रम का अनुभव कर कहा 'प्रभो, आपको इतनी दूर प्रतिदिन परिश्रम करना पडता है इसलिये यदि __ आप इस मेवाड में ही विराजें तो मुझे आपका क्षणिक
वियोग भी न हो।' यह सुन कर श्रीजी बोले 'तुमारो कहनो ठीक है । पन जब तक गुसाईंजी भूतल पै बिराजे हैं तब तक मेरो अन्यत्र निवास करनो असम्भव है । अनन्तर मैं यहां ही चिरकाल तक रहूंगो।' ___ कालान्तरमें अपनी प्रतिज्ञा को चरितार्थ करने के लिये श्रीजी ने एक उपाय सोच निकाला! उन दिनों प्रसिद्ध हिन्दूधर्म द्रोही मुसलमान नरेश औरंगजेब दिल्लीमें एक छत्र राज्य करता था । श्री जी ने सोचा यों राजी खुशी तो श्रीगुसाईजी के वंशज मुझे यहां से श्रीनाथद्वार ले नहीं चलेंगे इस लिये मुसलमानों द्वारा यहां उत्पीडन उत्पन्न कराना चाहिये । यह सोचकर श्री जी ने मुसलमान नरेश के हृदय में यह भावना उत्पन्न की।
फलतः जब गिरिराज यवनाक्रान्त हुआ तव आप मेवाड