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________________ १२६ श्रीमद्वल्लभाचाये आपके वियोग का अनुमान कर बडे दुःखी हुए। तब श्रीगुसाईजी ने उनसे कहा-'मेरा तो यहां रहना होगा नहीं, हां श्री जी तुमको नित्य दर्शन देंगे।' उस दिन से श्रीजी प्रतिदिन श्रीगिरिराज से मेवाड नाथद्वार-पधारकर महाराणा को दर्शन देते । एक दिन राणाने श्री जी के श्रम का अनुभव कर कहा 'प्रभो, आपको इतनी दूर प्रतिदिन परिश्रम करना पडता है इसलिये यदि __ आप इस मेवाड में ही विराजें तो मुझे आपका क्षणिक वियोग भी न हो।' यह सुन कर श्रीजी बोले 'तुमारो कहनो ठीक है । पन जब तक गुसाईंजी भूतल पै बिराजे हैं तब तक मेरो अन्यत्र निवास करनो असम्भव है । अनन्तर मैं यहां ही चिरकाल तक रहूंगो।' ___ कालान्तरमें अपनी प्रतिज्ञा को चरितार्थ करने के लिये श्रीजी ने एक उपाय सोच निकाला! उन दिनों प्रसिद्ध हिन्दूधर्म द्रोही मुसलमान नरेश औरंगजेब दिल्लीमें एक छत्र राज्य करता था । श्री जी ने सोचा यों राजी खुशी तो श्रीगुसाईजी के वंशज मुझे यहां से श्रीनाथद्वार ले नहीं चलेंगे इस लिये मुसलमानों द्वारा यहां उत्पीडन उत्पन्न कराना चाहिये । यह सोचकर श्री जी ने मुसलमान नरेश के हृदय में यह भावना उत्पन्न की। फलतः जब गिरिराज यवनाक्रान्त हुआ तव आप मेवाड
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
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