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और उनके सिद्धान्त ।
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में श्रीनाथद्वार में आकार विराजे । तब से आज तक आप उसी भूमि में विराजमान हैं।
अब हम यहां श्रीनाथजी के स्वरूप के विषयमें कुछ प्रमाण उद्धृत करते हैं।
गोपालतापिनीयोपतिषद् के पूर्वखण्ड में लिखा हैसत्पुण्डरीकनगनं मेघाभं वैद्युताम्बरम् । द्विभुजमौनमुद्राढ्यं वनमालिनमीश्वरम् ॥ गोपगोपीगवावीतं सुरद्रुमतलाश्रितम् । दिव्यालंकरणोपेतं रत्नपंकजमध्यमम् ।। कालिंदीजलकल्लोलसंगीमारुतसेवितम् ।
चित्ते यः संश्रयेत् कृष्णं सुक्तो भवति संसृतेः॥ __ अर्थात्-अच्छे पुण्डरकि नयनों की सी शोभावाले, सुन्दर मेघ की सी कान्तियुक्त, दो सुन्दर भुजा वाले, शान्त विग्रह वाले भगवान् श्रीकृष्ण के स्वरूप का जो ध्यान करता है वह मुक्त होता है । ___ जो मनुष्य गोप, गोपी और गौ के मध्यवर्ती, कदम्बतलाश्रित अनेक रत्नों से सुशोभित भगवान् श्रीकृष्ण का ध्यान करते हैं वे परम पद को प्राप्त होते हैं। श्रीमद्भागवत में श्रीनाथजी के विषयमें कहा है
गोपैमखे प्रतिहते व्रजविप्लवाय देवेभिवर्षति पशून्कृपया रिरक्षुः ।