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और उनके सिद्धान्त । १२५ तो बडो साच करेंगे । तारां तू मोकू आज को आज गिरिराज पै पहुंचा दे।"
तव आप गोपीवल्लभ अरोग कर रथ में विराजे । उस दिन नृसिंह चतुर्दशी थी सो सव उत्सव श्रीगिरिराज पर पधारकर आपने पूर्ण किये । राजभोग और सेन भोग उस दिन अगत्या इकठे करने पड़े । उस दिन से राजभोग
और सेन भोग नृसिंह चतुर्दशी को इकठे आने लगे। __एक समय श्रीगुसाईंजी द्वारका पधारे । बीच में मेवाड प्रान्त स्थित सीहाड (वर्तमान् नाथद्वार) नामक स्थल अत्यन्त मनोहर देख कर आपने वहां कुछ दिनों तक विश्राम किया । एक दिन आपने अपने अनन्य सेवक चाचा इरिवंश से कहा 'यह स्थल अत्यन्त मनोहर है। श्री जी के निवास के सर्वथा योग्य है । यहां पर एक दिन श्री जी अवश्य पधारेंगे । और इसे चिरकाल तक अपना निवास स्थल बनावेंगे।' ___ उस समय मेवाडमें राणा उदयसिंह राज्य करते थे। श्रीगुसाईजी का आगमन सुन कर वे स्वयं अपने परिवार सहित श्रीगुसाईजी के दर्शन को आये । राणा ने आपके चरणो में साष्टाङ्ग प्रणामकर गांव तथा मोहोर अर्पण की। श्रीगुंसाईजी ने भी प्रसन्न हो राणाको अपना प्रसादी वस्त्र उढाया। जब गुसाईंजी द्वारका पधारने लगे तव महाराणा