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श्रीमद्वल्लभाचार्य श्रीमहाप्रभु के स्वधाम पधारनेके अनन्तर जब श्रीगुसाईजी गद्दी पर विराजे तब आपने पुष्टिमार्गीय सेवापद्धति विस्तारसे प्रचलित की।
एक समय जब श्रीगुसाईजी गुजरात पधारे थे, श्रीनाथजीने गुसाईंजीके प्रथम पुत्र गिरिधरजी से कहा कि 'मैं तो आज तुम्हारे घर मथुरामें चलूंगो । तुम मोकू वहां ले चलो'। श्रीनाथजी की आज्ञा सुनकर गिरिधरजी रथ सिद्ध करालाये । श्रीगोवर्धननाथजी भी रथ में विराजे । श्रीगिरिधरजी स्वयं रथ के चालक बन अपने घर सतघग मथुरा में लिवा लाये । वहां संवत् १६२३ फाल्गुन वदी ७ गुरुवार के दिन श्रीनाथजी को पाट पधराये । इस पाटोत्सव को आजतक सात घर मान्य करते हैं । यह स्थान आजकल सतघरामें श्रीनाथजी की बैठक नाम से प्रसिद्ध है। जिस दिन श्रीनाथजी मथुराके सतघरमें पधारे उस दिन श्रीगिरिधरजीने अपना सर्वस्व श्रीनाथजी को अर्पण कर दिया और आप एक मात्र छोटी धोती पहन कर स्त्रीवर्ग सहित हाथ जोड कर घर के बाहर निकल कर खडे हो गये । __ वहां श्रीगुसाईजी को जब यह बात विदित हुई तो आप शीघ्रता से श्रीजीके दर्शनार्थ चल दिये । इनके आगमन का वृत्त जान श्रीजी श्रीगिरिधरजी से बोले “गिरिवर, श्रीगुसांईजी यदि मोकू श्रीगीरिराज पै नहीं देखेंगे