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और उनके सिद्धान्त । ११३ श्रीमद्भागवत वेदोपब्रह्मक ( वेदों के अर्थ को बताने वाली) है। ब्रह्मसूत्र जिस प्रकार 'जन्माद्यस्य यतः' इस सूत्र से प्रारम्भ हुआ है उसी प्रकार श्रीमद्भागवत का प्रारंभ भी जन्माघस्य यतः' इस वाक्य से हुआ है । वेदका वीज गायत्री है । इसलिये श्रीमद्भागवतकाभी प्रारम्भ गायव्यर्थसे किया गया है।
श्रीमद्भागवत के तीन स्वरूप हैं अध्यात्मिक, आधिभौतिक और आधि दैविक । आधिभौतिक स्वरूप अक्षरात्मक पुराण है । आध्यात्मिक-भागवत भक्ति शास्त्र है। इस प्रकार माहात्म्यपूर्वक सेवन करने वाले को भक्तिरुप फल देने वाली हैं। आधिदैविकस्वरुप द्वादशांगात्मक परब्रह्य परात्पर भगवान् पूर्णपुरुषोत्तम श्रीकृष्णचन्द्र है। __ श्रीमद्भागवत में द्वादश स्कन्ध हैं, तीयालीस प्रकरण हैं, तीनसो बत्तीस अध्याय हैं (दशमस्कन्ध के १३-१४-१५ तीन अध्याय प्रक्षिप्त माने गये हैं उनको भी गिनने से ३३५ अध्याय होते हैं ) इसमें १८००० श्लोक हैं और तीन इसमें भाषा हैं।
प्रथम स्कंध में श्रोता वक्ता के अधिकार का निरूपण है। इसमें १९ अध्याय और ३ प्रकरण हैं जिसमें पहले प्रकरण में तीन अध्याय द्वारा हीनाधिकार का वर्णन है । दूसरे प्रकरण के तीन अध्याय में मध्यमाधिकार निरुपण है।