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श्रीमद्वल्लभाचार्य के श्रवण और पठन से भगवान् हृदय में विराजते हैं, दंभ तथा वासना दूर होती है और भगवान् में आसक्ति बढती जाती है।
श्रीमद्भागवत का, शास्त्र, स्कन्ध,प्रकरण, अध्याय,वाक्य, पद, और अक्षर इन सात प्रकार से विवरण किया गया है। उन सात में से प्रथम चार का अर्थ श्रीवल्लभाचार्य विरचित मागवतार्थ प्रकरण निबन्ध में है और द्वितीयोक्त तीनों का वर्णन श्रीमद्भागवत की आचार्य निर्मित टीका श्रीसुबोधिनीजी में है। श्रीसुबोधिनीजी को भी समझाने के लिये आप के वंशज आचार्यों ने टिप्पणी, प्रकाश, लेख, योजना इत्यादि साहित्य निर्मित किये हैं।
श्रीकृष्ण के शुद्ध स्वरूप का बोधक यही एक ग्रन्थ है । इस में ज्ञानी से ज्ञानी भी वैसेही समान रूप से आनन्द पा सकता है जैसा एक अज्ञानी और मूर्ख । स्त्री और बालक जब दशमस्कन्ध की निरोध लीलाओंमें आनन्द लेते हैं तब ज्ञानी और पण्डित एकादश, पंचम और द्वादश स्कन्धों के अद्भुत वेदान्त विषयक विचारों को सुनकर भगवत्स्वरूप भागवत में तल्लीन हो जाते हैं। श्रीमहाप्रभुजीने आज्ञा की है-'सेवायां वा कथायां वा यस्यासक्तिहेढा भवेत् । यावजीवं तस्य नाशो न क्वापीति मतिर्मम' अर्थात् जिसकी सेवा और कथा में दृढ आसक्ति रहती है उसका जीवनभर कभी नाश नहीं होता।