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1 अन्यदेवताओंका हमारे यहां स्थान
हमारे सम्प्रदाय में अन्यदेवताओंकी उपासना उन्हें अपना स्वामी समझकर नहीं होती । सब देवता भगवान् के ही अंग है। किन्तु शिव वा विष्णु को न मानना इसका अर्थ उनकी अवज्ञा करना नहीं है । एकाश्रय को हमारे यहां सर्वोत्कृष्ट माना है और अन्याश्रय को हेय । यदि सोचकर देखा जाय तो इस बात को विचारशील मनुष्य पसन्द करेंगे । अनवस्थित चित्त होकर विविध देवों की उपासना विविध अवसरों पर करने से मानसिक शैथिल्य कितना बढ़ जाता है यह विद्वान् लोग जानते हैं । यहां पर इसी बातको उदाहरण स्वरुप से समझाई जाती है___ कनकपुर में राजीवलोचन नामके एक बडे धनाड्य व्यक्ति निवास करते थे। वे श्रीकृष्ण में परम विश्वास तो रखते ही थे किन्तु उसीके साथ हनुमानजी, गणेशजी शिवजी और चण्डी का भी कुछ इष्ट रखते थे। श्रीकृष्ण के दर्शन नित्य करते तो शिवजी के सोमवार को, चण्डी के मंगलवार को, गणेशजी के बुधवार को और हनुमानजी को शनिश्चर को