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और उनके सिद्धान्त ।
कितना उच्च आदर करते थे और वेद के विरुद्ध किसी भी बात को कितना धिक्कारते थे । उन्हीं से संचालित यह सम्प्रदाय वेदों पर परम विश्वास रखता है और अपनी पूर्ण श्रद्धा उसपर समय २ पर व्यक्त करता आ रहा है। दो चार मूरों के मुखसे दो चार निराधार बातों को सुन कर जो लोग इस सम्प्रदाय को अवैदिक वतलाने की चेष्टा कर रहे हैं उनको जरा उपर्युक्त उदाहरण ध्यानपूर्वक पढने चाहियें । सम्प्रदाय का रहस्य समझे विना कुछ भी बोलना अपनी अज्ञानता सिद्ध करता है । श्रीमद्वल्लभाचार्यजी और उनके आजतक के वंशधर वेदों पर पूर्ण श्रद्धा रखते हैं और वेदों को भगवान् का ही स्वरूप मानते हैं । वेद, ब्रह्मसूत्र गीता और श्रीमद्भागवत ये चार शास्त्र हमारे सम्प्रदायमें प्रमाण माने गये हैं। इनमें वेदों को सर्वोच्चस्थान प्राप्त है । किन्तु वेदों का अर्थ वेदों से ही स्पष्ट नहीं हो सकता इस लिये सन्देह की निवृत्ति के लिये इन पीछे वताये हुए शास्त्रों को भी माना है । वेदों के सन्देह की निवृत्ति इन तीनों शास्त्रों से हो सकती है। इनमें से श्रीमद्भागवत तो वेद का मानों स्पष्ट अर्थ ही है इसी लिये इसे हमारे यहां सर्वथा पूज्य गिना है।