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और उनके सिद्धान्त ।
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मार्गीय सेवापद्धति वेदानुसारिणी होती है यह बात वतलाई गई है।
धर्मनिर्णय में लौकिक युक्ति अनुपयुक्त है इसी को व्यक्त करते हुये आप कहते हैं_ 'अलौकिकेषु धर्मेषु प्रमाणमेवानुसतव्यम् । न लौकिकी युक्तिः । लौकिकं हि लोकयुक्त्यावगम्यते । ब्रह्म तु वैदिकम् ।' अर्थात्-अलौकिक धर्म में प्रमाण का ही, शास्त्र का हीअनुसरण करना चाहिये । लौकिक युक्ति से वहां काम नहीं चल सकता । क्यों कि लौकिकवस्तुका लौकिक युक्ति से ज्ञान होना सम्भव है। अलौकिक वस्तु का उससे ज्ञान नहीं हो सकता । ब्रह्म-धर्म-तो अलौकिक और वैदिक है। _ ब्रह्मको वेदके कथन के विरुद्ध जरा भी मानने से दोष आजाना सम्भव है इसी बात को आप कहते हैं___ 'ब्रह्म पुनर्यादृशं वेदान्तेष्ववगतं तादृशमेव मन्तव्यम्। अणुमानान्यथा कल्पनेऽपि दोषः स्यात्।' अर्थात्-ब्रह्म का वेद और वेदान्तो में जैसा वर्णन किया गया है वैसा ही समझना चाहिये । जरा भी दूसरी तरह से मानने में दोष आजाता है। __श्रीमद्वल्लभाचार्यजी वेदो में आये हुए आख्यान और उपाख्यानों को वैसा ही सत्य मानने की आज्ञा देते हैं जैसा उनकी ऋचाओं को। वेद पर आपको परम विश्वास