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आर उनके सिद्धान्त ।
स्वात्सर्वज्ञत्वाच" अर्थात्-वेदवादियों को और जो __ लोग वेदों पर भाष्य अथवा वेदों का अर्थ करते हैं उन्हें
उचित है कि वे वेद में अणुमात्र अन्यथा कल्पना न करें, वेदों का अर्थ करते समय अपनी तरफसे न तो एकाध अक्षर ही जोडें या कम करें अथवा न उन वेदाक्षरों को भी तोड मरोड कर कोई अर्थ निकालें । उन को उचित है कि वे वेदार्थ का प्रतिपादन उसी प्रकार करते जांय जैसा कि वेदों का तात्पर्य हो । वेद सर्वज्ञ हैं और अप्रतारक हैं उन में अनुचित या उचित कल्पना भी योग्य नहीं है।
वेदों का प्रतिपादन करने के लिये ही अन्य शास्त्र मात्र की प्रवृत्ति हुई है अतः जैसे भी हो सके यथा संभव वेदों के अक्षर को भी बाधा न आये इस प्रकार वर्तन करना चाहिये । पारलौकिक सच विषयो में वेद ही प्रमाण हैं। इसी पर गाढ विश्वास प्रकट करते हुए आप आज्ञा करते हैं
विदे सर्वत्र नाधिक्यम् । अतो वेदपरित्यागेनाधिकमेलनेन वा न वेदार्थो वक्तव्यः। अतो वेदाधसंवादी नार्थी ग्राह्यः कथंचन ।' अर्थात समग्र वेद में कुछ भी अधिक नहीं कहा गया है सर्वत्र उचित और योग्य ही लिखा गया है । न कहीं वढा के कहा गया है और न कहीं न्यून ही कहा गया है। अतः वेदों का अर्थ करते समय भी अपनी तरफसे न्यूनाधिक कुछ भी नहीं लगाना