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और उनके सिद्धान्त ।
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दिति गर्भ की यह कथा और इसके पूर्व में कही हुई पापी अजामिल की कथा भगवदनुग्रह किंवा पुष्टिमार्गीय तत्व के अच्छे परिचायक हैं । एक गर्भगत पालक महाबलशाली इन्द्रके हाथसे वज्र जैसे अमोघ प्राणहर अस्त्रसे मारे जाने पर भी न मरा और न नष्ट ही हुआ । यह है भगवान् का अनुग्रह | काल, कर्म, स्वभाव इन सबकी परवा भगवान् का अनुग्रह नहीं करता । अजामिल निरन्तर पापाचरण करनेवाला केवल नामामास से काल तक को जीत सका अथात् दुर्जय मृत्युपाश से भी मुक्त हो गया । यह काल का कैसा उल्लेखनीय (Markable ) पराभव हुआ । निश्चित कर्म करते रहनेपर भी उन कर्मों की दुष्ट यातना न मिलकर जो भगवत्प्राप्ति हुई यह है कर्म का जय । इसी प्रकार इन्द्र भी विश्वरूप, दधिची और वृत्र के मारनेपर भी अशुभ कर्म का फल न भोगकर अपने ही स्थान पर स्थित रह सका यह भी केवल श्रीहरिकी असीम कृपा और उनके अनुग्रह का एक जाज्वल्यमान प्रताप है ।
भगवान् का अनुग्रह धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन सर्वार्थ चारों पुरुषार्थों को सिद्ध करता है । जो साधक अपने आप को पुष्टिमार्गीय भक्त समझता पुष्टिमार्ग है उसकी आवश्यकता बहुत कम हुआ करती हैं । उस की सब आवश्यकताओं को प्रभु आप पूर्ण करते रहते हैं और वह विशेष कुछ भी अपने लियें आव