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श्रीमद्वल्लभाचार्य अन्य मतवाला या दुष्टसंस्कार से दूपित मनुष्य उनकी बुद्धिको आडे रस्ते नहीं ले जा सकता । जो लोग अपने सिद्धान्त के ज्ञान में अपरिपक्क हैं उनकी श्रद्धा सहज डिगाई जा सकती है । किन्तु जो लोग अपने सिद्धान्त की बात जानते हैं, हमारा पुष्टिमार्ग कितना श्रेष्ठ कितना निर्दुष्ट और कितना व्यापक है यह जानते है उनकी श्रद्धा संप्रदाय पर दृढ हो जाती है । ऐसी श्रद्धा से वैष्णवों की और सम्प्रदायकी वडी उन्नति होती है। वास्तव में ऐसे ही मनुष्यों की संप्रदाय और वैष्णवों को आवश्यकता रहती है जो अपने आप ज्ञाता और श्रद्धायुक्त होकर अपने संप्रदाय में रहते हैं।
हमारे संप्रदाय का नाम 'पुष्टिमार्ग' प्रसिद्ध है। इसी को साधारण लोग 'शुद्धाद्वैत' कहते हैं और यही जनतामें 'ब्रह्मवाद' भी कहलाता है । पुष्टिमार्ग का लोकप्रसिद्ध सरलार्थ है वालम 'भक्तिमार्ग' । _ 'पुष्टि' शब्द पारिभाषिक होने से साधारण लोग जो इस संप्रदाय का रहस्य नहीं जानते वे मोहित या भ्रमित हो जाते हैं । किन्तु वास्तव में 'पुष्टि' का अर्थ 'पोषण' है जिस का अर्थ अनुग्रह या कृपा होता है। अर्थात् 'पुष्टि' शब्द का अर्थ भगवान् पूर्ण पुरुषोत्तम श्रीकृष्णचन्द्रकी कृपा है । यदि स्पष्ट और विशद शब्दों में कहा जाय तो हम कह सकते हैं कि