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और उनके सिद्धान्त । __ 'जिस मार्ग में जीव और ईश्वर का सम्बन्ध परोक्ष रीति से
ही केवल नहीं होता है प्रत्युत प्रेम और कृपा से प्रत्यक्ष भी जीव और ईश्वर का संबंध हो जाता है यही हमारा सम्प्रदाय है और उसी को कहते हैं 'पुष्टिमार्ग' । जिस सम्प्रदाय में साधन और फल भगवान् श्रीकृष्ण ही हों और जहां भगवान् की कृपा ही सव कुछ मानी गई हो उसे ही पुष्टिमार्ग कहते हैं । जहां भगवान् की कृपा ही भगवान् से मिलाने का एक मात्र साधन समझी गयी हो और जहां उन सर्व सामर्थ्य सम्पन्न भगवान् श्रीकृष्ण की एक मात्र कृपा द्वारा ही लौकिक और वैदिक सिद्धि होती हो उसे 'पुष्टिमार्ग' कहते हैं । जहां अपने सनातन धर्म और सदाचार का सन्मान पूर्वक भगवदाज्ञानवत् परिपालन होता हो, जहां वेद, भागवत, भगवद्गीता और ब्रह्मसूत्र इन प्रस्थान चतुष्टय का प्रामाण्य हो, और जिस मार्ग में भगवदासक्ति
और व्यसन को परमोत्कृष्ट माना हो उसे ही 'पुष्टिमार्ग' कहते हैं। जहां भगवान् को स्वीकार करने में योग्यायोग्यत्व का परिचय नहीं कराना पडता, जहां जीव अपने आप को अत्यन्त दीन और निःसाधन मान प्रभू की कृपा का ही इच्छु बना रहता है उसे ही 'पुष्टिमार्ग' कहते हैं। जहां भगवान् स्वयं जीव का वरण करने में उसकी योग्यता नहीं देखते प्रत्युत अपन में सम्पूर्ण समर्पण