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________________ और उनके सिद्धान्त । इन उपर्युक्त बातों का समावेश इस 'विवेकधैर्याश्रय' ग्रन्थ में है। कृष्णाश्रय-इस ग्रन्य में जीवका एक श्रीकृष्ण ही रक्षक है इस बात का निरूपण कर जीव मात्र को श्रीकृष्ण के ही शरण जाना चाहिये इस वातका उपदेश दिया है। लोक, देश, काल, तीर्थ, मन्त्र, सत्पुरुष सब कलियुगके दोष से दुष्ट हो गये हैं । इस लिये प्रभु ही सर्वथा रक्षक और सेव्य हैं । इन बातों का इसमें निरूपण किया गया है। चतुःश्लोकी-इस ग्रन्थमें चार श्लोकों के द्वारा पुष्टिमार्गीय चार पुरुषार्थों का वर्णन है।। भक्तिमार्ग में प्रभु सेवा ही 'धर्म' है । श्रीकृष्ण ही वैष्णवों के लिये 'अर्थ' हैं । प्रभुके मुखारविन्द का दर्शन ही वैष्णवों के लियें 'काम' है और प्रभु के वास्तविक दासों में स्वीकार हो यही पुष्टिमार्गीय 'मोक्ष' है। इन्हीं बातों का संक्षेप में श्लोक चतुष्टय में आपश्रीने निरूपण किया है। भक्तिवर्धिनी-इस ग्रन्थ में प्रभु पर भक्ति व उसका उपाय बतलाया है। प्रभुकी नवधा भक्ति अवश्य करता रहै। इस से प्रभु में प्रेम उतन्न होगा । प्रभु में जब आसक्ति होती है तो जगद्वर्ती यावत्पदार्थ सारहीन लगते हैं और उनपर से आसक्ति
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
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