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श्रीमद्वल्लभाचार्य विवेक धैर्याश्रय-इस ग्रन्थ में विवेक धैर्य और आश्रय क्या हैं इनका निरूपण किया है। - विवेक के द्वारा कामनावशे के समय दृढता वनी रहती है और धैर्य के द्वारा दुःख के समय दृढता वनी रहती है। इन दोनों प्रकार की दृढता से प्रभु का आश्रय सिद्ध होता है।
विवेक मनुष्य कामनामय है । कोइ प्रकार की भी कामना हृदय में उत्पन्न हो और वो यदि पूर्ण न हो तो
मनुष्य को दुःख होता है और इससे प्रभुकी सेवामें __ व्याघात पहुंचता है । ऐसे समय में मनुष्य को उचित है
कि वह विवेक के द्वारा काम ले । 'प्रभु सर्व समर्थ हैं, कोई __ बात की प्रभु के यहां कभी नहीं है । फिर भी प्रभु मेरी
इच्छा जो पूर्ण नहीं करते हैं उसमें अवश्य कुछ कारण है। प्रभु मेरा हित ही करते हैं । मेरी इच्छा पूर्ति न करने में भी प्रभुने मेरा हित ही सोचा होगा । जब प्रभु की इच्छा होगी तब वे आप मेरी इच्छा पूर्ण करेगें।' ऐसी भावना करने कोही विवेक कहते हैं। इससे प्रभु सेवा में दृढता बनी रहती है। अभिमान को अपने हृदय में कभी स्थान नहीं देना चाहिये। दुराग्रह वैष्णव मात्र को कभी नहीं करना चाहिये । तीनों प्रकार के दुःखों को दृढता पूर्वक सहन करना चाहिये । प्रभु के ऊपर कभी अविश्वास लाना नहीं चाहिये । प्रभु से कभी किसी भी वस्तुके लिये प्रार्थना करनी नहीं चाहिये । अन्याश्रय कभी न करे।