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और उनके सिद्धान्त।
जिसको प्रभुकी सेवा करते समय लौकिकासक्ति द्वारा विघ्न हो उसे उचित है कि वह क्लेश भोग कर भी प्रभु सेवा का त्याग न करै । फल विलम्ब की निवृत्ति के लिये तथा प्रतिबन्ध निवृत्ति के लिये श्रीमद्भागवतका पठन श्रवण करता हुआ भगवत्सेवा करता रहै । निरन्तर सन्तोष रक्खे ।
पुष्टिप्रवाह मर्यादा भेद-इस ग्रन्थ में इन तीनों मार्गोंका वर्णन किया गया है। प्रभुके अनुग्रहात्मक मार्ग को पुष्टिमार्ग कहते हैं । वेदमार्ग की मर्यादा में चलने वाले को मर्यादामार्गीय कहते हैं तथा दुनिया के देखादेखी चलने वाले को प्रवाहमार्गीय जीव कहते हैं । इसका वर्णन हमने अन्यत्र किया है।
सिद्धान्तरहस्य–श्रीमद्वल्लभाचार्य का यह ग्रन्थ अपूर्व है । यद्यपि इस ग्रन्थ में कही हुई सब बातें भक्तिशास्त्र के सब आचार्यों को मान्य है तथापि किसी अन्य आचार्य ने इन सब बातों को प्रथक् एक ग्रन्थ में कहीं भी नहीं कहा है। शास्त्रो में यह बात छिपी हुई है इसी लिये इसे 'रहस्य' नाम दिया गया है। वैष्णवों के लिये इस बात के जानने की परम आवश्यकता है। अनधिकारियों के हृदय में यह बात नहीं जमती इसी लिये इसे रहस्य कहा है। ____ इस ग्रन्थ में पांच दोष बतलाये हैं और उनकी निवृत्ति ब्रह्म सम्बन्ध से होती है यह कहा गया है । यद्यपि इन