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और उनके सिद्धान्त । ५३ रहने से नवीन दिव्य देह की प्राप्ति होती है तथा प्रभु में स्नेह की बुद्धि होती है।
बालबोध-इस ग्रन्थ में पुरुषार्थ का वर्णन किया गया है । इस जगत् में अपनी २ बुद्धिके अनुसार समी मनुष्योने अलग २ पुरुषार्थ मान रक्खे हैं। कोई रुपये पैसे को पुरुषार्थ समझता है तो कोई कीर्ति को ही पुरुषार्थ समझे बैठे हैं । श्रीमद्वल्लभाचार्य को चारों पुरुषार्थ-धर्म अर्थ, काम और मोक्ष, मान्य हैं। इन चारों मे से काम और मोक्ष दो पुरुषार्थी को आपने मुख्य माना है । अप्राकृतिक सुखका ही नाम काम है और दुःख के अभाव को ही मोक्ष कहते हैं । सुख का साधन अलौकिक कर्म है, धर्म है । इस धर्म का साधन अर्थ माना गया है । इस लिये धर्म और अर्थ ये दोनो भी पुरुषार्थ हैं । पुरुष समय २ पर इन चारों की इच्छा करता है इस लियें ये चारों पुरुषार्थ गिने जाने उचित हैं । जगत् में ब्रह्मा, विष्णु और महेश ये तीन फलप्रद देवता गिने गये हैं । ब्रह्मा सृष्टिकार्य में लगे रहने से विष्णु और महेश दोनों पुरुषार्थ देनेवाले ईश्वर हैं । विष्णु मोक्ष देते हैं, शिवजी भोग और ऐश्वर्य का दान करते हैं। ___ मोक्षशास्त्र भी चार प्रकार के हैं। दो शास्त्र-सांख्य और योग, अपने किये साधनों से ही मोक्ष दे सकते हैं और दूसरे दो शास्त्र, वैष्णव शैव एक दूसरे के आश्रय ग्रहण करने से पुरुषार्थ देते हैं।