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श्रीमद्वल्लभाचार्य निवन्ध के भागवतार्थ प्रकरण में आचार्यश्री ने किया है। श्रीमद्भागवत की सम्पूर्ण टीका लिख लेने के अनन्तर निवन्धका यह तृतीय भागवतार्थ प्रकरण आपश्रीने लिखा है । ____ आपका तीसरा स्वतन्त्र ग्रन्थ षोडश ग्रन्थ ग्रन्थसमुच्चयात्मक है । इस षोडशग्रन्थ में छोटे २ सोलह ग्रन्थों का समावेश होता है इस लिये इस का नाम षोडशग्रन्थ है। सोलह ग्रन्थों के नाम ये है श्रीयमुनाष्टक, वालवोध, सिद्धान्तमुक्तावली, पुष्टिप्रवाहमर्यादाभेद, सिद्धान्तरहस्य, नवरत्न, अन्तःकरणप्रवोध, विवेक धैर्याश्रय, पंचपद्य, संन्यास निर्णय, कृष्णाश्रय, चतुःश्लोकी, भक्तिवर्धिनी, जलभेद, निरोधलक्षण और सेवाफल ।
इन सोलह लघु ग्रन्थो में आपश्रीने अपूर्व कुशलता पूर्वक अपने समग्र सिद्धान्तों का संग्रह कर दिया है। ___ यमुनाष्टक-श्रीयमुनाजी हमारे सम्प्रदाय में विशेष पूजनीय मानी जाती हैं । इस ग्रन्थ में आचार्यश्रीने श्रीयमुनाजी के स्वरूप और माहात्म्य का वर्णन किया है। श्रीयमुनाजी व्रजजन के चतुर्थ यूथ की स्वामिनी हैं । प्रभु का जो स्वरूप है और प्रभु में जो गुण हैं वे ही श्रीयमुनाजी में भी हैं। श्रीयमुनाजी प्रभु की परम प्रेयसी प्रिया हैं । इस यमुनाष्टक का पाठ करने से देह की शुद्धि होकर सेवा का अधिकार प्राप्त होता है । इसके अविरत पाठ करते