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________________ और उनके सिद्धान्त । विद्वान् बहुत सी संख्या में उनसे शास्त्रार्थ करने आने लगे। इससे आपश्री को भगवत्सेवा में बडा विघ्न उपस्थित होने लगा। भगवत्सेवा में यह प्रतिबंध दूर हो इस इच्छा से आप श्री ने इस पत्रावलंबन (ब्रह्मवाद का यथार्थ प्रतिपादन करनेवाला ग्रंथ) श्री काशी विश्वेश्वर के द्वार पर चोंटा दिया तथा काशी के धुरंधर पंडितों को तद्विरुद्ध शास्त्रार्थ करने को कहा । किन्तु ऐसे ग्रन्थ का खण्डन कौन कर सकता था। निदान पण्डितों ने अपना पराजय स्वीकार किया। द्वितीय स्वतन्त्र ग्रन्थ तत्वार्थ दीप निवन्ध है । यह ग्रन्थ कारिका रूप है । सुनने में आता है कि दिग्विजय में सरलता हो जाय इस लिये सिद्धान्तों के सन्दोह रूप इन कारिकाओंका आप श्री के शिष्य गण मुख पाठ करते । इन कारिकाओं में से प्रायः सब ही आचार्य श्री की निर्मित की हुई हैं तव कितनी ही नारद पंचरात्र, श्रीमद्भागवत, महाभारत और रामायणादि में से भी उद्धृत की गई हैं। सर्व मान्य ब्रह्मवाद के आधार पर भक्तिमार्ग का इस में प्रतिपादन है। इस ग्रन्थ के तीन विभाग हैं । शास्त्रार्थ, सर्व निर्णय और भागवतार्थ । प्रथम में गीताशास्त्र का सन्दोह है। द्वितीय में सर्व तत्वों का निर्णय है और तृतीय में श्रीमद्भागवत के चार अर्थों का समावेश है। श्रीमद्भागवत के शास्त्रार्थ, स्कंधार्य, प्रकरणार्य और अध्यायार्थ का प्रतिपादन
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
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