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________________ एलंक बकरे का अध्ययन ७ भोग में तृप्ति नहीं है और जड़ में कहीं भी सुख नही है । भोगों में जितनी आसक्ति होगी उतनी ही श्रात्मा अपने स्वरूप से दूर रहेगी। जितना ही अपने स्वरूप से दूर रहा जायगा उतनी ही पापपुंज की वृद्धि होगी और परिणाम में अधोगति में जाना पड़ेगा । इसलिये मनुष्य जन्म को सार्थक करना यही अपना परम कर्तव्य है । ( १ ) जैसे अतिथि ( मेहमान ) को कोई आदमी अपने आंगन में और जौ देकर पोषण करे । लक्ष्य करके ( निमित्त ) बेकरे को पालकर चावल ( २ ) इसके बाद वह हृष्ट पुष्ट, बड़े पेट का मोटा ताजा, खूब चर्बी वाला बकरा और भी विपुल देहधारी बनता है मानों तिथि की ही राह देख रहा है ! (३) जब तक वह अतिथि घर नही श्राता तभी तक वह बिचारा ( बकरा ) नी सकेगा, परन्तु अतिथि के घर आते ही ४
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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