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________________ उत्तराभ्ययन सूत्र वह और घरवाले उसका माथा काट डालते (वध कर डालते ) हैं और उसे खाजाते हैं। (४) सचमुच जैसे वह वकरा केवल अतिथि के लिये ही पाला पोसा गया था उसी तरह अधर्मी चालक (मूर्ख ) जीव भी (कर कर्म करके ) नरक गति का बंध करने के लिये ही भोगोपभोगों (काम) द्वारा पाप से पोसे जाते हैं। टिप्पणी--जिस तरह बकरा खाते समय खूब आनंद मग्न होता है उसी तरह भोग भोगते समय जीवात्मा क्षणिक सुख में मग्न हो जाता है किन्तु जब अतिथिरूपी काल ( मृत्यु ) आता है तब उसकी महा दुर्गति होती है और पहिले भोगा हुआ, किंचित क्षणिक सुख महा दुःखरूप हो जाता है। नरकगामी वाल जीव कैसे दोपों से घिरा रहता है ? (५) बाल जीव हिंसक, असत्यभापी, वटेमार, डाकू, मायाचारी, अधर्म की कमाई खाने वाले, शठ, और(६) स्त्रियों में आसक्त, इन्द्रियलोलुपी, महारंभी, महा परि ग्रही, मद्यपी तथा मांसभक्षक, परापकारी, पाप करने में खूब पुष्ट (पापी),(७) बकरा आदि पशुओं के मांस को खाने वाले, वड़े पेट वाले (देयादेय भक्षक ), कुपथ्य खाकर शरीर में रक्तवृद्धि करने वाले, ऐसे ये अधर्मी जीव, जैसे वह पुष्ट बकरा अतिथि की राह देखता है वैसे ही वे नरकगति की राह देखते हैं। (अर्थात् ऐसे पापी मरकर नरक में जाते हैं।) टिप्पणी-स्पर्मन, रसन, बाण, क्षु, और कान इन पांच इन्द्रियों के विपयों में जो भासक्त है टसे इन्द्रिय लोलुपी कहते हैं 1 महारंभी
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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