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एलक
अर्थात् महास्वार्थी हिंसक, और महापरिग्रही अर्थात् अत्यन्त ( असं
नोपी ) भासक्ति वाला। (८)(गुदगुदे) कोमल आसन, शय्याएं, सवारियां (गाड़ी
घोड़ा आदि), धन तथा भोगोपभोगों को क्षणभर भोग कर अन्त में, कष्टोपार्जित धन को, तथा अनन्त कर्ममल
को इकट्ठा करके(९) इस तरह पाप के बोझ से दबा हुआ जीवात्मा केवल वर्त
मान काल की ही चिन्ता में मन ( भविष्य कैसा दुःखद होगा इसका विचार किये बिना) रहकर क्षणिक सुख भोगता है किन्तु जैसे अतिथि के आने पर वह पुष्ट वकरा महादुःख के साथ मृत्यु को प्राप्त होता है वैसे ही वह पापी
भी मृत्यु के समय अत्यंत पश्चात्ताप करता है। टिप्पणी-प्रत्युत्पन्न परायण अर्थात् पीछे क्या होगा उसको नहीं विचा
रने वाला जीव । कार्य को प्रारंभ करते समय जो उसके परिणाम को नहीं विचारता है वह अन्त में खूब हो पछताता है किन्तु
पिछला पश्चात्ताप बिलकुल व्यर्थ है। (१०) ऐसे घोर हिंसक आयु के अंत मे इस शरीर को छोड़कर
कर्म पाश में बंधकर आसुरी दशा को प्राप्त होते हैं अथवा
नरकगति में जाते हैं। टिप्पणी-जैनधर्म में ऐसे घोर हिंसकों के लिये असुरगति किंवा नरकगति
ये ही दो गतियां मानी हैं। १) जैसे एक मनुष्य ने एक कानी कौड़ी के लिये लाखों
सुवर्ण मुद्राएं (मोहरें) खर्च करदी अथवा एक रोगमुक्त . राजाने अपथ्य रूप केवल एक आम खाकर अपना सारा