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________________ ५२ उत्तराध्ययन सूत्र राज्य गंवा दिया (वैसे ही जीवात्मा क्षणिक सुख के लिये अपना तमाम भव विगाड़ लेता है)। टिप्पणी-ठक्त दोनों शास्त्रोक्त दृष्टांत हैं। तात्पर्य यह है कि अनुपम वथा अमूल्य आत्म सुख को छोड़कर जो कोई जड़ जन्य विषय भोगों की इच्छा करता है वह कानी कौड़ी के लिये लाखों सुवर्ण मोहरे गंवा देता है। रोगमुक्त करने वाले वैद्य ने राजा को पथ्य पालन के लिये आम न खाने को कहा था किन्तु जरा से स्वाद के लोभ से टसने आम खालिया जिससे उसकी मृत्यु हुई । इसी तरह ये संसारी, जीव क्षगिक सुख के लिये अपने अनन्त.आन्मिक सुख का नाश करके संसार में भ्रमण करते ही फिरते हैं। देवगति के मुखों की मनुष्य-गति के सुखों से तुलना (१२) (इस तरह से ) मनुष्य-गति के भोगोपभोग देवगति के भोगों के सामने विलकुल तुच्छ हैं। देवगति के भोग ( मनुष्य-गति के भोगों की अपेक्षा ) हजारों गुने अधिक और श्रायुपर्यंत दिव्य स्वरूप में रहने वाले होते हैं। (१३) उन देवों की श्रायु भी अमर्यादित ( जिसे संख्या द्वारा गिना न जासक ) काल की होती है। ऐसा जानते हुए भी सौ से भी कम वर्षों की मनुष्य आयु में दुष्ट वुद्धि वाले पुरुष. विपय मार्ग में बुरी तरह फंस जाते हैं। (१४) जैसे तीन व्यापारी मृडी लेकर व्यापार करने (परदेश) गये थे किन्तु उनमें से एक को लाभ हुआ, दूसरा अपनी, मृढी ज्यों की त्यों लाया, (१५) और तीसरा अपनी गांठ की मूडी भी गुमाकर पीछे लौटा
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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