________________
क्षुल्लक निर्ग्रथ
अनाचारी भिक्षुओं का अध्ययन
६
ज्ञान या श्रविद्या ही इस संसार का मूल है। केवल अज्ञान शास्त्र पढ़जान से प्रथवा वाणी द्वारा मोक्ष की बात करने से उसका नाश नहीं हो सकता । अज्ञान का निवारण करने के लिये भी कठिन से कठिन पुरुषार्थ और विवेक संपादन करने चाहिये । इस जन्म में प्राप्त साधन, जैसे धन, परिवार श्रादि का मोह भी सरलता से नहीं छूट सकता । उसकी श्रासक्ति हटाने के लिये भी कठिन से कठिन तपश्चर्या करनी पड़ती है तो अनन्त जन्मों से वारसे (उत्तराधिकार ) में प्राप्त और जीवन के प्रत्येक अणु के संस्कार में पैठे हुए अज्ञान को दूर - करने के लिये बहुत भारी प्रयत्न करना पड़ेगा, यह बात स्पष्ट ही है ।
केवल वेश परिवर्तन ( मेप बदलने ) से विकास नहीं हो सकता । वेश परिवर्तन के साथ ही साथ हृदय का भी परिवर्तन होना चाहिये । यही कारण है कि जैनदर्शन में ज्ञान के साथ २ आचार ( वर्तन ) की श्रावश्यकता पर बहुत जोर दिया गया है।