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________________ अकाम मरणीय ४३ ( अर्थात् उस प्रकार की उत्तम श्रात्मन्दशा को प्राप्त करके) विशेष प्रसन्न होता है । (३१) और उसके बाद जब मृत्यु समीप श्राती है तब वह श्रद्धालु साधक उत्तम गुरु के पास जाकर लोमहर्ष ( देहमूर्च्छा ) को दूर कर इस देह के वियोग की इच्छा करे । टिप्पणी -- जिसने अपने जीवन को धर्म में ओतप्रोत कर दिया है वही अन्त समय में मृत्यु को आनन्द के साथ भेंट सकता है । (३२) ऐसा मुनि मृत्यु प्राप्त होने पर इस शरीर को दूर कर तीन प्रकार के सकाममरणों में से ( किसी ) एक मरण द्वारा अवश्य मृत्यु पाता है । टिप्पणी- यह सकाममरण तीन प्रकार का होता है, ( १ ) भक्त प्रत्यख्यान मरण (मृत्यु समय आहार, जल, स्वाद्य, खाद्य, किसी भी प्रकार की वस्तु का ग्रहण न करना); ( २ ) इंगित मरण ( इसमें चार प्रकार के आहार के पच्चकखाण सिवाय क्षेत्र की भी मर्यादा बनाली जाती है ); (३) पादोपगमन मरण ( कंपिल वृक्ष की शाखा की तरह एक हो करवट कर मृत्यु पर्यंत पड़े रहना ) इस तरह तीन प्रकार के सकाममरण होते हैं। 1 ऐसा मैं कहता हूँ । इस प्रकार " प्रकाममरणीय' नामक पांचवां अध्ययन समाप्त हुआ ।
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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