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असंस्कृत
है उसी तरह ऐसा पुरुष न्याय मार्ग को देख कर भी
मानों देखता ही न हो इसतरह व्यामोह में जा-फंसता है। टिप्पणी-कुछ लोगों की यह मान्यता है कि 'मरते समय धनसे यमदूत
को समझा लेंगे। किन्तु जीव के चलने के समय धनादि भी
शरणरूप नहीं होते इस बात का इसमें इशारा किया है। (६) इसलिये सुप्तों में जागृत (आसक्त पुरुषों में निरासक्त ),
बुद्धिमान और विवेकी ऐसा साधक (जोवन का) विश्वास न करे, क्योंकि क्षण भयंकर है और शरीर निर्बल है,
इसलिये भारण्ड पक्षी की तरह अप्रमत्त होकर विचरे। . टिप्पणी-काल दुव्य अखंड है किन्तु शरीर तो नाशवान है इस अपेक्षा
से भयंकर बता कर क्षणमात्र का भी प्रमाद न करने का उपदेश दिया है। भारंट पक्षी के दो मुख होने पर भी शरीर एक ही होता है इस लिये यह चलते, बैठते, उठते हमेशा मन में ख्याल रखता है। इसी तरह साधक को भी सावधान रहना चाहिये। ७) थोड़ीसी भी आसक्ति जाल के समान है, ऐसा मानकर डग
डग पर सावधान होकर चले । जहां तक लाभ हो तहां तक संयमी जीवन को लम्बावे किन्तु अन्तकाल समीप
आया देख इस मलिन शरीर का अन्त लावे । टिप्पणी-अप्रमत्त साधक को जब अपनी आयुष्य की पूर्णता का पूरा २
विश्वास हो जाय तभी उसका समान पूर्वक त्याग करे अन्यथा देह पर भले ही ममस्व न हो तो भी इसे आरमविकास का साधन मान कर इसकी रक्षा करने के कर्तव्य को न भूले। १) जैसे सधा हुआ और कवचधारी घोड़ा युद्ध में विजय
प्राप्त करता है उसी तरह साधक, मुनि स्वच्छन्द (अपनी वासनाओं) को रोकने से मुक्ति प्राप्त करता है और पूर्व