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चतुरंगी .
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टिप्पणी-देवगति में एकांत सुख ही सुख है। वहां बाल्यावस्था,
युवावस्था और वृद्धावस्था नहीं होती। वे मृत्यु तक समान दशा
में रहते हैं। इसी दृष्टि से उक्त कथन किया गया है । (१५) दिव्य सुखों को प्राप्त और कामरूप (इच्छानुसार रूप) . . धारण करने वाले वे देव.ऊंचे (कल्पादि) देवलोक में
सैंकड़ों पूर्व (अंसख्य काल) तक निवास करते हैं। टिप्पणी-कल्पादि देवलोक की उच्च श्रेणियां हैं और 'पूर्व' एक अत्यंत
विशाल काल प्रमाण को कहते हैं । (१६) उस स्थान ( देवलोक ) में यथायोग्य स्थिति करके आयु
के पूर्ण होने पर वहां से च्युत होकर वे देव मनुष्य योनि में उत्पन्न होते हैं और वहां उनको १० अंगों की ( उत्तमोत्तम
सामग्री की ) प्राप्ति होती है। (१७) क्षेत्र (प्रामादि), वास्तु (घर), सुवर्ण ( उत्तम धातुएं)
पशु, दास ( नौकर ), ये ४ काय स्कन्ध जहां होते हैं वहां
वे जन्म लेते हैं। टिप्पणी-ये चारों विभाग मिलकर एक अंग बनता है। (१८) (और वे ) मित्रवान, ज्ञातिमान् , उच्चगोत्र वाले, कांतिमान् ,
अल्परोगी, महावुद्धिमान , कुलीन, यशस्त्री तथा बलिष्ठ
होते हैं। टिप्पणी-ये नौ अंग तथा ऊपर का एक मिलकर सब १० अंग हुए। (१९) अनुपम मनुष्य योग्य भोगो को आयुपर्यन्त भोगते हए
भी पूर्व के विशुद्ध सत्यधर्म को पालन कर और शुद्ध असे सम्यक्त्व को प्राप्त कर