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________________ उत्तराध्ययन सूत्र (१०) मनुष्यत्व, सत्य श्रवण और श्रद्धा प्राप्त होने पर भी संयम की शक्ति प्राप्त होना तो अति कठिन है। बहुत से जीव सत्य को रुचिपूर्वक सुनते तो हैं किन्तु उसको आचरण में नहीं ला सकते | 1 टिप्पणी-ऐसा होने का कारण अनिवार्य कर्म बन्धन बताया है अन्यथा सत्य की तरफ रुचि होने पर उसको आचरण में लाये विना रहा नहीं जा सकता । (११) मनुष्यत्व को प्राप्त कर जो जीव धर्म सुनकर श्रद्धालु बनता है वह पूर्व कर्म को रोककर शक्तिप्राप्त करता है और संयम धारण कर तपस्वी वनकर कर्म जाल का नाश कर बालता है। २८ सरल आत्मा की शुद्धि होती है और शुद्ध मनुष्य के अन्तःकरण में ही धर्म ठहर सकता है। ऐसा जीव घी से सिंचित अग्नि की तरह शुद्ध होकर क्रमशः श्रेष्ठ मुक्ति को प्राप्त करता है । (१३) कर्म के हेतु ( कारण ) को ढूंढो । क्षमा से कीर्ति प्राप्तकरो ऐसा करने से पार्थिव ( स्थूल ) शरीर को छोड़कर तू ऊंची दिशा में जायगा । टिप्पणी-अपनी अंतरात्मा को लक्ष्य करके यह कथन किया गया है । अथवा शिष्य को लक्ष्य करके गुरु ने कहा है 1 (१४) अति उत्कृष्ट श्राचारों ( संयमों ) के पालने से [ जीवात्मा] उत्तमोत्तम यक्ष ( देव ) होता है । वे देव अत्यंत शुक्ल ( श्वेत ) कांति वाले होते हैं और वे ऐसा मानते हैं कि मानों व उनका वहां से कभी पतन ही नहीं होगा ।
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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