________________
परिषह
(१३) किसी अवस्था में वस्त्ररहित ( अथवा फटे-पुराने वस्त्रों सहित ) और किसी अवस्था में वस्त्र सहित हो तो ये दोनों ही दशाएं संयम धर्म के लिये हितकारी हैं । ऐसा जानकर ज्ञानी मुनि खेद न करे ।
१७
टिप्पणी- प्रथम की 'किसी अवस्था' अर्थात 'जिनकल्पी अवस्था' | (१४) गांव गांव में विचरने वाले और किसी एक स्थान में न रहने वाले तथा परिग्रह से रहित ( ऐसे ) मुनि को यदि कभी संयम से अरुचि हो तो वह उसे सहन करे ( मन में रुचि का भाव न होने दे ) ।
(१५) वैराग्यवान्, आत्मरक्षा में क्रोधादि कषाय से शांत और श्रारंभ का त्यागी ( ऐसा ) मुनि, धर्मरूपी बगीचे में बिचरे ।
टिप्पणी: --- संयम में ही मन को लगाए रक्खे | (१६) इस संसार में स्त्रियों, पुरुषों की आसक्ति का महान् कारण है । जिस त्यागी ने इतना जान लिया उसका साधुत्व सफल हुआ समझना चाहिये |
टिप्पणी :- स्त्रियों के संग ( सहवास ) करने से विकार पैदा होता है । विकार से काम, काम से क्रोध, क्रोध से संमोह और अन्त में पतन होता है । मुमुक्ष को इस सत्य को पूर्ण रूप से जानकर स्त्री संग छोड़ देना चाहिये । इस तरह मुमुक्षु स्त्रियों को भी पुरुषों के विषय में समझना चाहिये ।
(१७) इस तरह समझ कर कुशल साधु स्त्रियों के संग को कीचड़ जैसा मलिन मान कर उस में न फंसे । आत्मविकास का मार्ग ढूंढ कर संयम में हो गमन करे ।
२