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________________ उत्तराध्ययन सूत्र भिक्षार्थ जाने वाले भिनु का धर्म (३२) जहाँ बहुत से आदमी पंक्ति भोज में जीम रहे हों वहां - भिक्षुको नहीं जाना चाहिये । वह प्रेम पूर्वक दी हुई मिक्षा ही प्रहम करें। (ऐसी) कठिनता से प्राप्त अन्न भी केवल नियत समय पर केवल परिमित मात्रा में ही ग्रहण करे । (३३) दाता के घर (भोजनालय) से विशेष दूर भी न हो और न अति पास ही हो और जहाँ दूसरे श्रमण उसको देख न सकें तथा जहां जाने में दूसरों को लांघना न पड़े ऐसे स्थान में भिक्षु को भिक्षा के लिये खड़ा होना चाहिये। टिप्पणी:-~-यदि दूसरे भिक्षु उसे देखेंगे तो संभव है कि उसको खेद • हो अथवा दाता के मन पर असर हो-इसलिये ऐसा न करने का विधान किया गया है। (३४) ( दाता से) ऊँचे चबूतरे पर खड़े होकर किंवा नीचे खड़े होकर अथवा अतिदूर किंवा अति निकट खड़े होकर भिक्षा ग्रहण न करे । भिक्षु उसी निर्दोष अन्न को ग्रहण करे जो दूसरे के निमित्त बनाया गया हो। टिप्पणी:-दूसरे के निमित्त से यह माशय है कि वह भोजन खास भिक्षु के लिये तैयार न किया गया हो । भिक्षु कैसे स्थान में और किस तरह आहार करे ? (३५) जहां बहुव जीवजन्तु (कीड़े मकौड़े) न हों, वीज न फैले हों, तथा जो चारों तरफ से ढंका ( वन्द) होऐसे स्थान में संयमी पुरुप, विवेक पूर्वक तथा जमीन पर
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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