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विनय श्रुत
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उच्छिष्ट भोजन न पड़े इसकी संभाल के साथ, समभाव
(स्वाद का विचार न करते हुए ) भोजन करे। । (३६) क्या ही अच्छा बना है, क्या ही अच्छी रीति से बनाया
गया है, क्या ही अच्छी तरह से संभारा गया है, क्या ही बारीक कटा है, क्या खूब बना है, क्या कहना है, कैसा अच्छा संस्कार (छोंक बघार आदि) हुआ है, आज कैसा स्वादिष्ट भोजन मिला है-इत्यादि प्रकार की इंद्रिय लोलुपता जन्य दूषित मनोदशा मुनि को त्याग देनी चाहिये।
गुरु तथा शिष्य के क्या कर्तव्य हैं ? ३७)अच्छा घोड़ा चलाने में जैसे सारथी को आनन्द आता है
वैसे ही चतुर साधक को विद्यादान करने में गुरु को - आनंद प्राप्त होता है। जिस तरह अड़ियल टट्टू को __ चलाते २ सारथी थक जाता है वैसे ही मूर्ख को शिक्षण
देते २ गुरु भी थक ( हतोत्साह हो ) जाते हैं। ३८) पापदृष्टि वाला शिष्य (पुरुष) कल्याणकारी विद्या प्राप्त
करते हुए भी गुरु की चपतों और भत्सनाओं (मिडकियों)
को वध तथा आक्रोश ( गाली) मानता है। (३९) साधु पुरुष तो यह समझ कर कि गुरुजी मुझको अपने
पुत्र, लघुभ्राता, अथवा स्वजन के समान मान कर ऐसा कर रहे हैं इसलिये वह गुरुजी की शिक्षा ( दण्ड) को
अपना कल्याणकारी मानता है किन्तु पापदृष्टि वाला शिष्य • उस दशा में अपने को गुलाम मान कर दुःखी होता है।