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________________ ४४४ उत्तराध्ययन सूत्र Pramme NA लिखा है। मनुप्ययोनि संकलना रूप से सात या आठ भवों तक अधिक से अधिक चाल, रह सकती है और उस परिस्थिति में उतनी आयुस्थिति भी हो सकती है। (२००) गर्भज मनुष्य अपनी काया छोड़ कर फिर उसी योनि में जन्मधारण करे तो इन दोनों के अन्तराल का प्रमाण कम से कम एक अन्तर्मुहूर्त का अथवा अधिक से अधिक अनन्त काल तक का है। (२०१) गर्भज मनुष्यों के स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण एवं संस्थान की अपेक्षा से हजारों ही भेद हैं। __(२०२) सर्वज्ञ भगवान ने देवों के ४ प्रकार बताये हैं । अब मैं उनका वर्णन करता हूँ सो तुम ध्यानपूर्वक सुनो । (१) भवनवासी ( भवनपति), (२) व्यंतर, (३) ज्यो तिष्क और (४) वैमानिक । (२०३) भवनवासी देव १० प्रकार के, व्यंतर देव ८ प्रकार के, ज्योतिष्क देव ५ प्रकार के, तथा वैमानिक देव दो प्रकार के होते हैं। (२०४)(१) असुरकुमार, (२) नागकुमार, (३)सुवर्ण कुमार, (४) विद्युतकुमार, (५) अग्निकुमार, (६) द्वीपकुमार, (७) दिग्कुमार, (८) उदधिकुमार, (९) वायुकुमार, और (१०) स्तनितकुमार-ये १० भेद भवनवासी देवों के होते हैं। (२०५) ( १ ) किन्नर, (२) किंपुरुप, (३) महोरग, (४ गन्धर्व, (५) यक्ष, (६) राक्षस, (७) भूत, (८) पिशाच-ये पाठ भेद व्यंतर देवों के हैं।
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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