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________________ जीवाजीवविभक्ति (१९५) कर्मभूमि के १५ भेद हैं. (पाँच भरत, पाँच ऐरावत और पांच महाविदेह ), अकर्मभूमि (भोगभूमि ) के ३० भेद हैं-(५ हेमवत, ५ हैरण्यवत, ५ हरिवास, ५ रन्यकवास, ५ देवकुरु, ५ उत्तर कुरु) और ५६ अन्तरद्वीप हैं। ये सब मिल कर एक सौ एक जाति के गर्भज मनुष्य कहे हैं। - (१९६) सम्मूर्छिम मनुष्य भी गर्भज मनुष्य जितने ही ( अर्थात् १०१) प्रकार के कहे हैं। ये सब जीव लोक के अमुक ___भाग में ही विद्यमान हैं, सर्वत्र व्याप्त नहीं है। टिप्पणी-मातापिता के संयोग बिना ही, मनुष्य के मलों से जो जीव उत्पन्न होते हैं उन्हें सम्मूर्छिम मनुष्य कहते है। गर्भज मनुष्य की तरह उसके पर्याप्त तथा अपर्याप्त-ये दो भेद नहीं होते। (१९७) प्रवाह की अपेक्षा से ये सब अनादि एवं अनन्त हैं कितु आयुष्य की अपेक्षा से आदि एवं अन्त सहित हैं। (१९८) गर्भज मनुष्यों की आयुस्थिति कम से कम अन्तर्मुहूर्त की ___ तथा अधिक से अधिक तीन पल्य कही है। टिप्पणी-सम्मूर्छिम मनुष्य की आयुस्थिति जघन्य एवं उत्कृष्ट केवल एक अन्तर्मुहूर्त की है। कर्मभूमि के मनुष्य की जघन्य भायु अन्त. मुहूर्त तथा उत्कृष्ट मायुस्थिति एक करोड़ पूर्व की होती है। यहाँ तो सर्व मनुष्यों की अपेक्षा से उपरोक्त स्थिति लिखो है । (१९९) गर्भज मनुष्यों की कायस्थिति कम से कम अन्तर्मुहर्त को ___ तथा अधिक से अधिक तोन पल्यसहित पृथक पूर्व कोटी की है। टिप्पणी-कोई जीव सात भव मे तो १-१ पूर्व कोटी की तथा आठवें भव में ३ पल्य की आयु प्राप्त करे इस दृष्टि से उपरोक्त प्रमाण
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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