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उत्तराध्ययन सूत्र
(१८८) माह की अपेक्षा से ये सब जीव श्रनादि एवं श्रनन्त है किन्तु श्रायु की अपेक्षा से वे सादि एवं सान्त हैं ।
(१८९) खेचर जीवों की श्रायुस्थिति कम से कम अन्तर्मुहूर्त की तथा अधिक से अधिक एक पल्य के असंख्यातवें भाग जितनी है ।
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(१९०) खेचर जीवों की जघन्य कायस्थिति श्रन्तमुहूर्त की है और उत्कृष्ट कार्यस्थिति एक पल्य के असंख्यातवें भाग सहित दो से नौ पूर्व कोटी तक की है।
(१९१) खेचर जीव अपनी काया छोड़ कर उसी काया को फिर धारण करें उसके बीच का अन्तराल कम से कम अन्त मुहूर्त का और अधिक से अधिक अनन्तकाल तक का है । (१९२) उनके स्पर्श, रस, गंध, वर्णं तथा संस्थान की अपेक्षा से हजारों भेद होते हैं।
( १९३) मनुष्य दो प्रकार के होते हैं, ( १ ) सम्मूर्छिम मनुष्य और ( २ ) गर्भज मनुष्य । अब मैं उनके उपभेद कहता हूँ सो तुम सुनो।
(१५१) गर्भज ( मातापिता के संयोग से उत्पन्न) मनुष्य तीन प्रकार के कहे हैं - ( ? ) कर्मभूमि के, (२) कर्मभूमि के, और (३) अन्तरद्वीपों के ।
(वाणिज्यकर्म ) कृषि
दिगणी - कर्मभूमि अर्थात् जहां असि, मसि आदि कर्म करके जीविका पैदा की जाय । अन्तरद्वीप अर्थात् चूलहिमवंत और शिवरी इन दो पर्वतों पर ४०४ दर्द और प्रत्येक दादा में सात २ अन्तरद्वीप है । वहाँ पर भोगभूमि की तरह युगदिया मनुष्य स्पन होते हैं