________________
-
-
-
4
G
*
/
४३६
उत्तराध्ययन सूत्र wwwwwwwwwwwwwwwwwwwww (१३९) ये सब समस्त लोक में नहीं किन्तु उसके अमुक भाग में
ही रहते हैं। (१४०) प्रवाह की अपेक्षा से ये सब अनादि और अनन्त हैं
किन्तु आयुष्य की अपेक्षा से श्रादि-अन्त सहित हैं। (१४१) त्रीन्द्रिय जीवों की आयुस्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और
उत्कृष्ट ४९ दिन की होती है। (१४२) त्रीन्द्रिय को कायस्थिति, उसी काय को न छोड़े तब तक
की, कम से कम अन्तर्मुहूर्त की और अधिक से अधिक
संख्यात काल तक को है। (१४३) त्रीन्द्रिय जीव अपने एक शरीर को छोड़कर फिर दुवारा
उसी योनि में शरीर धारण करे तो उसके बीच के अन्तराल का जवन्य प्रमाण अन्तर्मुहूर्त का और उत्कृष्ट
प्रमाण अनन्तकाल तक का है। (१४४ो नीलिय जीवों के स्पर्श, रस, गंध, वर्ण एवं संस्थान की
अपेक्षा से हजारों भेद होते हैं।। (१४५) चतुरिन्द्रिय जीव (१) पर्याप्त, और ( २) अपर्याप्त__ये दो प्रकार के होते हैं। अब मैं उनके उपभेद कहता हूँ,
उन्हें सुनो। ...१४६) ( ?) अंधिया, (२) पोतिया, (३) मक्खी , (४)
मच्छर, (५) भौरा, (६) कीड़ा, (७) पतंगिया,
(८) ढिकणा, (९) कंकणा(१४७) (१०) कुकुट, (११) सिंगरोटी, (१२) नंदावृत्त, (१३)
विच्छ, (१४) डोला, (१५) मिंगुर, (१६) चीरली, (१७)
अँखफोड़ा,।