________________
जीवाजीवविभक्ति
४३७
(१४८) (१८) अच्छील, (१९) मागध, (२०) रोड, (२१) रंगवि
रंगी तितलियां, (२२) जलकारी, (२३) उपधि जलका,
(२४) नीचका, और (२५) ताम्रका। टिप्पणी-भिन्न २ भाषाओं में इनके जुदे २ नाम हैं। (१४९) इस प्रकार चतुरिन्द्रिय जीवो के अनेक भेद कहे हैं। ये
सव लोक के किसी अमुक भाग में ही रहते हैं। (१५०) प्रवाह की अपेक्षा से तो ये सभी जीव अनादि एवं अनंत
हैं किन्तु आयुष्य की अपेक्षा से वे त्रादि-अन्त सहित हैं। (१५१) चतुरिन्द्रिय जीव की आयु जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है
और उत्कृष्ट आयु ६ महीने की है। (१५२) चतुरिन्द्रिय जीवों की कायस्थिति ( उस काय को न छोड़े
तब तक की स्थिति) कम से कम अन्तर्मुहूर्त की और
अधिक से अधिक संख्यात काल तक की है। (१५३) चतुरिन्द्रिय जीव अपना शरीर छोड़कर फिर उसी काय
मे जन्में तो उसके बीच के अन्तराल का जघन्य प्रमाण अन्तर्मुहूर्त का और उत्कृष्ट प्रमाण अनन्तकाल
तक का है। 1१५२) ये चतुरिन्द्रिय जीव स्पर्श, रस, गंध, वर्ण और संस्थान
की अपेक्षा से हजारों तरह के होते हैं। ११५५) पंचेन्द्रिय जीव ४ प्रकार के होते हैं:-(१) नारकी, (२)
तिर्यंच, (३) मनुष्य और (४) देव । (१५६) रत्नप्रभादि सात नरकभूमिओं होने से सात प्रकार के
नरक कहे हैं उन भूमिओं के नाम ये हैं:-(१) रत्नप्रभा, (२) शर्करा प्रभा, (३) वालुप्रभा।